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वाराणसी के श्री शृंगेरी शंकर मठ, महमूरगंज में दूसरे दिन ब्रह्मश्री वद्दिपर्ति पद्माकर गुरुजी का शतावधान

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तेलंगाना से पधारे संस्कृत विद्वान महामहोपाध्याय आचार्य दोर्बल प्रभाकर शर्मा का हुआ सम्मान


  वाराणसी:-  वाराणसी के श्री शृंगेरी शंकर मठ, महमूरगंज में त्रिभाषा महा सहस्रावधानी ब्रह्मश्री वद्दिपर्ति पद्माकर गुरुजी का शतावधान कार्यक्रम के दूसरे दिन शनिवार को सुबह का सत्र भव्य रूप से शुरू हुआ।

       वाराणसी के श्री शृंगेरी मठ, महमूरगंज में वज्रोत्सव भारती महोत्सव के अवसर पर दर्शनम् आध्यात्मिक वार्ता मास पत्रिका और काशी तेलुगु संगमम के तत्वावधान में तीन दिनों तक चलने वाले त्रिभाषा महा सहस्रावधानी ब्रह्मश्री वद्दिपर्ति पद्माकर गुरुजी का 25वां शतावधान जुलाई 25 शुक्रवार को भव्य रूप से शुरू हुआ था।

इस पृष्ठभूमि में दूसरे दिन शनिवार को सुबह प्राश्निकों और साहित्य प्रेमियों के बीच ब्रह्मश्री वद्दिपर्ति पद्माकर गुरुजी का शतावधान साहित्य प्रेमियों के लिए एक त्योहार की तरह था। दूसरे दिन शतावधान कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में महामहोपाध्याय आचार्य दोर्बल प्रभाकर शर्मा और मुख्य अतिथि के रूप में बनारस हिंदू तेलुगु विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य आचार्य भूदाटी वेंकटेश्वरलु उपस्थित थे।

पहले दिन शुक्रवार को सुबह और शाम को समस्याएं, दत्तपद और वर्णन अंशों की पूर्ति हुई। इसमें से कुछ पूरी तरह से और कुछ आंशिक रूप से पूरी हुईं। दूसरे दिन शनिवार को पूरी पूर्ति जारी रही। शुक्रवार को प्राश्निकों द्वारा दिए गए कई विषयों के लिए उनकी उपस्थिति में पूरी पूर्ति की गई ब्रह्मश्री वद्दिपर्ति पद्माकर गुरुजी ने।

दूसरे दिन शनिवार को कार्यक्रम में वेदिका पर संस्कृत पंडित दोर्बल प्रभाकर शर्मा का और आयोजकों द्वारा भव्य स्वागत किया गया।
चिंतामणी गणेश के महंत चल्ला सुब्बा राव के नेतृत्व में 300 संस्कृत ब्राह्मणों ने काशी विश्वनाथ का दर्शन पूजन किया।
समापन मे ये रहेंगी उपस्थित

तेलंगाना भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व अध्यक्ष एवं भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य के. गीता मूर्ति सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहेंगे।
इनकी रही उपस्थिति

     कार्यक्रम में गुरु सहस्रावधानी कडिमेल्ल वरप्रसाद, सहस्रावधानी कोट लक्ष्मीनरसिंह, गीता प्रेस के आयोजक, शतावधानी उप्पलधडियं भरत शर्मा,  एम.वैंकट रमन शर्मा, एल कामेश्वर राव, राजीव लोचन शर्मा, चल्ला अन्नपूर्णा प्रसाद, चल्ला सुब्बा राव, संतोष सोलापुरकर सहित सैकडों की संख्या में तेलंगना व आंध्रा प्रदेश से आए संस्कृत विद्वान उपस्थित रहे।

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