सांसदों की निष्क्रियता और जनता के बीच पिछले 5 वर्ष तक न जाना, जनता के मूड को न समझना उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार का एक मुख्य कारण रहा है। यूपी वो राज्य है ,जहाँ से पिछले 2 चुनाव में जनता ने भाजपा को सिर पर बैठा कर सत्ता तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त किया था।
इस बार लोकसभा के चुनाव में जहाँ बीजेपी 80 की 80 सीटें जीतने का दावा कर रही थी, कैसे 33 सीटों पर ही सिमट कर रह गई वास्तव में भाजपा के थिंकटैंक को इस पर गहन चिंतन की जरूरत है। हमेशा से राजनीति के जानकार कहते आये हैं कि केन्द्र में सत्ता का मार्ग यूपी से होकर गुजरता है। भाजपा को यूपी से मिली करारी शिकस्त की वजह से ही वो अपने दम पर बहुमत के जादुई आंकड़े से दूर रह गई ।अब वो केंद्र में सरकार बनाने के लिये एनडीए में शामिल अपने घटक दलों पर निर्भर है।
बीजेपी संगठन ने ऐसे सांसदों के बारे में पहले ही सूचित किया था जो चुनाव जीतने के बाद जनता के बीच गये ही नहीं। जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान विकास कार्य द्वारा जनता का विश्वास नही जीता। वे योगी और मोदी के भरोसे पर अपनी चुनावी नैया को पार लगाना चाहते थे किंतु जनता ने उन्हें बता दिया कि लोकतंत्र में जनता ही माई-बाप है।
भाजपा हाई कमान एवं रणनीति संगठन इस बात को समझ ही नहीं पाया कि मन्दिर बनवाने और धर्म के सहारे के अलावा जनता की नब्ज को टटोलना और उसके अनुसार कार्य करना ही वास्तव में सत्ता द्वार तक पहुंचने की गारण्टी है। मोदी और योगी ने तो रिकार्ड तोड़ जन सभाएं एवं रैलियां करके जनता को अपने पक्ष में करने का भरपूर प्रयास किया,जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश की किन्तु जनता ने नकार दिया। कई मौजुदा सांसदों के टिकट काटकर नये लोगों को टिकट दिया गया किन्तु इसमें भी पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई, इससे भी नुकसान होने की बात सामने आ रही है।