“सेवा एवं समर्पण ही शिष्य के लिए गुरूदक्षिणा है।” – सतगुरू सरनानन्द
वाराणसी। संतमत अनुयायी आश्रम, मठ गड़वाघाट में पूरे दिन ठसाठस लोगों की भीड़ ने लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करती रही। मौका था गुरूपुर्णिमा का।
आदिकाल से चली आ रही चिर परम्परा “गुरू-दीक्षा” को जीवित रखते हुए भटके लोगों को दीक्षित कर सही मार्ग दिखाने का प्रयास संतमत अनुयायी आश्रम, मठ गड़वाघाट के वर्तमान पीठाधीश्वर श्री श्री 108 स्वामी सरनानन्द जी महाराज ने अपने बहुमूल्य जीवन का धर्म मान लिया है। काशी नगरी के दक्षिणी क्रोड़ में माँ भागीरथी के तट पर अवस्थित सन्तों की तपस्थली गड़वाघाट में उषाकाल से ही भक्तों, सन्तों व शिष्यों का हुजूम दिखने लगा और यह निरन्तर चलता रहा, जैसे लगा “चरैवेति चरैवेति” चरितार्थ हो गयी। विस्तृत क्षेत्र में फैले गुरू आश्रम में आधी रात तक लोग आते गये और उसी में समाते गये।
गुरू महोत्सव का शुभारम्भ आश्रम के पूर्व पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 स्वामी आत्मविवेकानन्द जी परमहंस से लेकर श्री श्री 1008 स्वामी हरशंकरानन्द जी परमहंस तक क्रमशः सभी पीठाधीश्वरों की समाधियों में विधिवत् पूजन-अर्चन व आरती वर्तमान पीठाधीश्वर के कर कमलों से हुआ। तत्पश्चात् गुरू परम्परा के अनुसार वर्तमान पीठाधीश्वर को सुसज्जित आसन ग्रहण कराकर, संत, भक्त और शिष्यों ने पूजन-अर्चन व आरती किया। इसी क्रम में अबाध गति से यह कार्यक्रम अर्द्धरात्रि तक निरन्तर चलता रहा।

सायंकाल में भी आश्रम के विशाल सतसंग भवन में श्री सद्गुरूदेव जी की विराट एवं भव्य नयनाभिराम महा आरती को देख श्रद्धालू, अपने को धन्य मानने लगे। उक्त अवसर पर उमड़े भक्तों के समूह को सम्बोधित करते हुए श्री श्री 108 स्वामी सद्गुरू सरनानन्द जी महाराज परमहंस ने कहा कि “मानव जीवन की श्रेष्ठता उसके कर्मों से सिद्ध होती है। अपना कर्म श्रेष्ठ रखें, प्रारब्ध भी श्रेष्ठ होगा। सेवा एवं समर्पण ही शिष्य के लिए गुरूदक्षिणा है।”
दिन पर्यन्त चले इस महोत्सव में बाबा प्रकाशध्यानानन्द, धर्मदर्शनानन्द, सतज्ञानानन्द, दिव्यदर्शनानन्द एवं कलकत्ता, मुम्बई, हरिद्वार आश्रम से आये अनेक महात्मागण एवं स्थानीय भक्तों का समुदाय बड़ी तत्परता से गुरू-सेवा में लीन दिखाई दिया।
